ठहरे से इन लम्हों में भी हिम्मत अपनी पुरजोर है,
गौर करो, दूर कहीं वो बहती इक नदी का शोर है..
क्यूँ रुक जाऊं मैं यूँ ही इन वादियों की हस्ती देख कर
जब फिरता हूँ मैं अपनी मंजिल की मस्ती देख कर!
हौसला मेरा नहीं ये शायद, इक चिराग की रौशनी में जलता हूँ
आइना सा बन कर मेरे दिल में जो रोशन है, मुस्कुराता झूमता चलता हूँ;
कभी कभी अपना रस्ता भूल जाता हूँ मैं, दूर निकल जाता हूँ मैं,
वो कशिश है या ऐतबार, बंद आँखों से भी रस्ते पर लौट आता हूँ मैं
याद नहीं ज़मीन पर उतरे थे, या पहले कदम लडखडाये, तब से थामे कोई डोर है
अरे सुनो, दूर कहीं वो उसी नदी का शोर है!
ज़मीं को चीरती, अपने में मसरूफ, मस्ती से सराबोर है,
दूर नहीं है, अब वो यहीं है, ये इसी नदी का शोर है..