Saturday 22 October 2022

सवाल

फटे हुए आँसू गैस के गोले
सड़क पर पलटी दूध की बाल्टियाँ 
लाठियों के ज़ोर पर बिखरी पगड़ियां 
सवाल नहीं पूछतीं 

बिके हुए अख़बारों की काली स्याही
उनके साझेदार रंगीन इश्तहार
और पेशेवर माइक्रोफ़ोन भी
सवाल नहीं पूछते

जन-नेताओं के बंगलों में 
लबालब भरे घी के कटोरे
और सर के बल टंगे चमचे
सवाल नहीं पूछते

रोज़ की दौड़ में,
भेड़-चालों  में
अपना आवेग रौंद कर फिरती
बेइरादा ज़िंदा लाशें 
सवाल नहीं पूछतीं

सवालों के उठने के लिए ज़रूरी है
अख़लाक़ का ज़िंदा रहना
ऊँचे तान पर छिड़े खोखले नारों के
उफान में न बह जाना
समुदाय की स्वीकृति के 
हिमपात में जम न जाना..

सवालों के उठने के लिए ज़रूरी है
एक अनकहा जज़्बा होना
विद्रोह की शक्ति होना
सच का ख़फ़ा होना !