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Thursday, 4 June 2020

गोकर्ण का किनारा

आसमान का आईना होगा,
या कुछ मिलावट होगी
या horizon ने धाँधली की है?
सूरज को अक्सर शाम शिनाख्त करते देखा है!
रंगे हाथों पकड़ा कल रात,
सर पर सितारों की कनात थी
और समन्दर में बिछे थे हूबहू-
टिमटिमाते phytoplanktons; तुम भी क्या जीव हो!
तब खेवटिये ने बतलाया-
उंगलियां इंसानों की बस्ती में उठती होंगी
यहाँ गवाहों की हस्ती ही बदल दी जाती है..
और किनारा भी वो ज़मीन के टुकड़े का है,
समन्दर की तो पूरी रियासत है!