Monday 21 August 2017

बॉम्बे-कूच

सुना है इक शहर है,
सबको अपना बना लेता है;
कि लोग यहाँ आकर
कुछ अपना सा ढूंढ ही लेते हैं !

मैं बेसिम्त-बेवक़्त चला मुसाफिर हूँ..
या कोई अनाड़ी बंजारा ?

या वो शहर और होते हैं,
या वो लोग और होते हैं !



Thursday 10 August 2017

ऋचा के लिए


पॉकेटमार थी कोई !
समुन्दर किनारे walk पर निकला था, ढलती शाम थी
आस्माँ के कोनों से पिघलता सोना बह रहा था

सामने से आयी वो,
जेब में हाथ डाले, भीड़ में मुस्कुराती
horizon की सिलाई पर ब्लेड मारकर
मेरी रातें चुरा ले गयी!