सुना है इक शहर है,
सबको अपना बना लेता है;
कि लोग यहाँ आकर
कुछ अपना सा ढूंढ ही लेते हैं !
मैं बेसिम्त-बेवक़्त चला मुसाफिर हूँ..
या कोई अनाड़ी बंजारा ?
या वो शहर और होते हैं,
या वो लोग और होते हैं !
सबको अपना बना लेता है;
कि लोग यहाँ आकर
कुछ अपना सा ढूंढ ही लेते हैं !
मैं बेसिम्त-बेवक़्त चला मुसाफिर हूँ..
या कोई अनाड़ी बंजारा ?
या वो शहर और होते हैं,
या वो लोग और होते हैं !
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