Wednesday, 19 July 2017

लिबास..

काले कौए parliament की
छत पर बैठे सत्याग्रह तो नहीं करते!
इन पर सफ़ेद कमीज चढ़ा दो
तो निचली मंज़िल में बैठ
विधि-विधान लिख डालें..

वाह री लिबास!

Friday, 14 July 2017

समय की अटारी

कोनों में निरर्थक शब्दों के जाल बुने हैं
खूँटी पर कटे-फटे मनोरहस्य के छंद टंगे हैं
फ़र्श पर बिखरे प्रसंग के टुकड़े हैं
बक्से में पड़े कुछ व्यंग्य सिकुड़े हैं
छान पर कुछ जंग लगे अलंकार के तार हैं
प्रेम-भाव की सीलन में तर दीवार हैं

समय की अटारी में, अनदेखे से, वे -
गुज़रती हो जब तुम इधर से, तुम्हारे पॉंव की आहट पर
रोशनदान से झाँक कर देखा करते हैं सब
फिर कान में मेरे धीरे से कहते हैं, यहां जगह नहीं है हमारी -

हमे खींचिये हाथों से, कलम से, कागज़ पर!