वक़्त के तिराहे पर निकले
हाँफ जाता हूँ चढ़ के चढानेें;
साल के इस दिन
कौन सी बारिश पड़ती है?
जो स्याही की शीशी
खुद ही भर जाती है !
डायरी खोलता हूँ तो
एक नन्ही नज़्म मेरी
कंधे पर आकर बैठ जाती है
और कहती है-
सब ठीक हो जायेगा !
हाँफ जाता हूँ चढ़ के चढानेें;
साल के इस दिन
कौन सी बारिश पड़ती है?
जो स्याही की शीशी
खुद ही भर जाती है !
डायरी खोलता हूँ तो
एक नन्ही नज़्म मेरी
कंधे पर आकर बैठ जाती है
और कहती है-
सब ठीक हो जायेगा !