फटे हुए आँसू गैस के गोले
सड़क पर पलटी दूध की बाल्टियाँ
लाठियों के ज़ोर पर बिखरी पगड़ियां
सवाल नहीं पूछतीं
बिके हुए अख़बारों की काली स्याही
उनके साझेदार रंगीन इश्तहार
और पेशेवर माइक्रोफ़ोन भी
सवाल नहीं पूछते
जन-नेताओं के बंगलों में
लबालब भरे घी के कटोरे
और सर के बल टंगे चमचे
सवाल नहीं पूछते
रोज़ की दौड़ में,
भेड़-चालों में
अपना आवेग रौंद कर फिरती
बेइरादा ज़िंदा लाशें
सवाल नहीं पूछतीं
सवालों के उठने के लिए ज़रूरी है
अख़लाक़ का ज़िंदा रहना
अख़लाक़ का ज़िंदा रहना
ऊँचे तान पर छिड़े खोखले नारों के
उफान में न बह जाना
उफान में न बह जाना
समुदाय की स्वीकृति के
हिमपात में जम न जाना..
सवालों के उठने के लिए ज़रूरी है
हिमपात में जम न जाना..
सवालों के उठने के लिए ज़रूरी है
एक अनकहा जज़्बा होना
विद्रोह की शक्ति होना
सच का ख़फ़ा होना !