११ साल हुए,
हम दो लोग भटकते हुए
अपने अपने शहरों से
जुहू चौपाटी पहुंचे;
बेरोज़गार थे,
ज़िन्दगी का compass हर दिशा में
अपनी पूँछ काटते doggie सा
गोल-गोल घुमाता था;
ज्योमेट्री समझते थे -
2πr में टिकने को कोई कोना नहीं होता!
पर उम्मीदें उफान मार रही थीं..
आधी रात को
लकड़ी की चम्मच से फालूदा काट कर
रोहित का बर्थडे मनाया था
४ घंटे beach पर
रेत को पाँव से कुरेदते
अपनी-अपनी सुनाते..
(शायद एक तस्वीर भी नहीं खींची
पर ज़हन में HD-recording छपी है!)
वहाँ से चल के
Marine Drive पर बैठे थे
एक सवाल उठा -
life बहुत तेज़ भागती है
समझ नहीं आता साला करना क्या है?
जवाब मिला - यही तो करना है
समुन्दर की लहरें ज़ोर डालेंगी-
पॉंव में चप्पल लटका कर
सवाल पूछने हैं
जवाब ढूंढ़ने हैं
खुद से, एक-दुसरे से!
१६ साल घर में रहे
पिछले १८ साल से
एक-दुसरे को पाल रहे हैं..
हिम्मत-डर, कमियाँ-खूबियाँ
सब balance करते हैं!
उस दिन को आज ११ साल हुए,
थोड़े बाल पक गए हैं
थोड़ी हिम्मत बढ़ गयी है
और उम्मीदें आज भी उफान मार रही हैं
नए सवाल हैं..
जवाब भी नए मिल रहे हैं!