Saturday, 3 September 2016

साइंस-फ़िक्शन

आज हाइपरस्पेस पढ़ते-पढ़ते
एक ख़्याल आया
कि रात होने तो दो
ख़्वाबों की दुनिया में खो कर
नींद में ऐसी करवट लेंगे कि
Fourth डायमेंशन में 90° घूम जाएंगे
और फिर अपनी नाक सिकोड़ कर
मुँह ऐसे पीछे खींच लेंगे
जैसे Y-एक्सिस पर वक़्त
और timeline पर हमारी नाक की लंबान रखी हो

फिर जो ज़ोर से छींकेंगे
कि जिस वक़्त में आँख खोली
वहाँ सब ठीक होगा..
हम इतने गलत नहीं होंगे
शायद नाक भी थोड़ी चपटी होगी
और माइकल जैक्सन का अगला एल्बम..

हाँ भई,  बाकी सब ठीक ही है...


वक़्त की क़ैद में ज़िन्दगी है मगर 
चंद घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं


Ш : Hyperpace - Michio Kaku

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