Saturday, 24 June 2017

जून के दिन

आँखें मसलते हुए,
मुँह में टूथब्रश दबा कर
चादर को तह मारी है आज;
बस, पौधों को पानी देकर
फुर्सत हो जाना है अब..

पर ज़रा दिल बैठता है;
जून का महीना ख़त्म होने को है
और छुट्टियों की उलटी गिनती भी  -
कुछ याद नहीं आ रहा!
Geography की टीचर ने कहीं  
Holiday Homework तो नहीं दे रक्खा?

चौखट को पाँव लांग नहीं पाते
कि अंदर से आवाज़ आती है-
"आधा किलो दही लेते आना!"
- कढ़ी बनेगी आज तो,
कल बेसन भी तो मंगाया था!

उधर बरामदे में key hanger पर
एक ख़ाना खाली है,
पापा दफ्तर निकल गए होंगे;
अरे, छुट्टी-छुट्टी  चलेगा आज,
उस दिन कैप्टेन व्योम पर तो
डीडी समाचार लीप दिए गए थे!


जो रहता है सो घड़ी में शाम के पाँच का इंतज़ार 
लखनऊ की लू - और मम्मी का कर्फ्यू;
क्रिकेट खेलने बुलाने जाओ तो एक दोस्त की दादी
रूह-आफ्ज़ा का शरबत पिलाती हैं,
सोचता हूँ उसी को अपना best-friend बना लूँ..


बस आईने में शक्ल देखो तो
सब बदला-बदला लगता है..
समझ नहीं आता,
वॉश-बेसिन पर लटकी वो मकड़ी
क्यूँ नीचे उतर कर
डराने नहीं आती अब?

ओह, बड़ा हो गया हूँ!


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