Thursday 20 December 2018

वक़्त का शहर

शहर भी उनका, पैमाइश भी उनकी
वक़्त के इस शहर में बातें कभी बीती नहीं होती

यहाँ हर गुज़रे लम्हे के अर्ज़ पर एक इमारत खड़ी है
हर ख़्वाबीदा मुस्कान के गुलज़ार खिले हैं
उन लावारिस सवालों की बड़ी-बड़ी हवेलियाँ -
खँडहर हुईं, पर भूली नहीं गयी..

यहां साला सब ही कुछ landmark सा है
रास्ता भटकने जाएँ भी तो कहाँ जाएँ !





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