Friday, 30 March 2018

confused नज़्म

न कुछ मिसालें देती है
न कुछ जताना ही चाहती है -
सवाल भी नहीं इसके ज़हन में कोई !

बस लफ़्ज़ हैं,  ३ + २ के सोफ़े पर
पूरी पलटन ठस कर बिठा रक्खी है
इस छोटे से पन्ने में..
जल्दी में हैं सारे, कि रस्में अदा करें
और चलते बनें भाईसाब -
रात जवाँ है अभी,
सपनों के casting director से
सामना पड़े तो
तो कुछ काम-धाम हाथ लगे !

बड़ी confused नज़्म है भई!
chronological order भी नहीं समझती;
वक़्त को ऊन के गोले सा लपेट कर
ये कैसा स्वेटर बुना है,
कि इसमें सर भी नहीं घुसता मेरा ?
sense of humor भी बैठा सा ही है !

रात के २ बजे हैं,
कुछ बयां करना था, भूल गया !
अब सच लिखूँ, तो यही है..

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